Monday 24 February 2014

मौसम, मानव और ईश्वर

                             दोस्तों मौसम कुछ ज्यादा ही बेईमान हो चला है, फाल्गुन के महीने में ये ठंडक और सर्दी का ये रूप जहाँ कुछ लोगो को आनंदित कर रहा है वहीँ कई इसके दुष्परिणाम भी भुगत रहे हैं, हॉस्पिटल मरीजों से भर रहे हैं, सबसे ज्यादा नुक्सान हो रहा है फसलों का, मध्य- प्रदेश में गेंहूं के किसानो की हालत ख़राब है, या तो पूरी फसल खराब हो गयी है या फिर उसकी क्वालिटी पर असर पड़ा है | मैं सोचता हूँ क्या होगा छोटे किसानो और उनके परिवारों का ? बेशक़ सरकार मुआवजा देगी..पर हमारे देश में मुआवजा कितनी ईमानदारी और आसानी से मिलता है इसके बारे में कौन नहीं जानता ?

         " रेमोन मैग्ससे " फिलीपीन्स के वह महान राष्ट्रपति जिनके नाम पर
" मैग्ससे अवार्ड" दिया जाता है, उन्होंने कहा था, "किसी भी सरकार या तंत्र को यदि कानून बनाना है तो आखिरी पंक्ति में खड़े उस अंतिम व्यक्ति के बारे में सोच के, उस के कल्याण हेतु कानून बनाओ, तो उस कानून,उस नियम के दायरे में सारा समाज, सारा देश आ जायेगा|" 
               पर मुझे लगता है ईश्वर मैग्ससे साहब की इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता, तभी तो वह जो तांडव दिखता है उस में सबसे ज्यादा नुक्सान गरीब और बेसहारा आदमी का ही होता है | और श्री जय प्रकाश नारायण की वह बात सत्य हो जाती है " गरीब ही मरता है " |
             क्यों की मैं और आप या कोई भी व्यक्ति जिसके पास थोडा भी सम्बल है, वह झटका तो खाता है पर संभल भी पता है, पर उसका क्या जिसने सरकारी बैंक से ही सही उधार ले के गेंहू बोया था, इस सहारे कि बरसात अच्छी हुई है, ठण्ड भी समय पर है, फसल सारे दुःख दूर कर देगी | पर वही मौसम तो दुखदायी हो गया | गुलमर्ग और देहरादून में पर्यटको को अतुलनीय मौसम देखने को मिला, उन्होंने अपने जीवन का सबसे अच्छा समय प्राप्त किया, और वहीँ दूसरी तरफ एक किसान ने अपनी सारी उम्मीद खो दी |
                सड़क का वह भिखारी जिसने अपनी फटी हुई कथरी को ये समझ के तकिया बना लिया था के अब तो गर्मी आ गयी, एक ठंडी बारिश ने उस कथरी को भी किसी काम का न छोड़ा |


हाँ जनता हूँ की हम में से कई लोग कहेंगे " ईश्वर की लीला है, उसकी वही जाने, वह जो करता है वो ही जानता है, हमारे ही पापो का दण्ड है..वगेरह..वगेरह | पर दुनिया का कोई भी तर्क या Fuzzy Logic की कोई भी थ्योरी , किसी एक के आनंद को किसी दूसरे के दुःख का कारण बन जाने को न्यायसंगत नहीं ठहरा सकती |
हाँ हो सकता है, दुनिया बहुत बड़ी है, ब्रम्हाण्ड और भी असीमित और ईश्वर एकमात्र सत्ता ...शायद वह अकेले यह सत्ता सम्भाल पाने में खुद को थोड़ा 'कम' पा रहा हो ? और ऐसे में उसे भी एक टीम की आवश्यकता महसूस हो रही हो ..एक टिकाऊ, भरोसेमंद और ईमानदार टीम |
                                                                            - 
गप्पू चतुर्वेदी 

Thursday 6 February 2014

महतवपूर्ण और जरुरी


               फ़ोन लगातार बजता जा रहा था और मैं जल्दी में था | गाड़ी चलाऊं या रूककर फोन रिसीव करू ? क्या महतवपूर्ण है और क्या जरुरी ?
कहीं कोई जरुरी फ़ोन हुआ तो मुसीबत हो जाएगी | मैं गाडी चलते में भी फोन उठा सकता हूँ, परन्तु चलते रास्ते में भीड़ इतनी होती है कि रुकना आसान नहीं होता |
                 क्या मैं कुछ गलत तो नहीं कर रहा? ज़िन्दगी महवपूर्ण है, यदि कोई पीछे से ठोंक गया तो पड़े रहना पड़ेगा हॉस्पिटल में| आज कल वैसे भी मौत बीमारियों और दुर्घटनाओ के भेष में आती है |

                 
                       क्या करू मैं? कहीं महतवपूर्ण के लिए जरुरी न छूट जाए | कहीं गैर जरुरी के चककर में माहतवपूर्ण का नुकसान न हो जाए | सोचना पड़ेगा |

खैर जीवन ने आपको जो दिया और आपको जीवन से जो चाहिए, दोनों ही अलग अलग मसले हैं जिन्हे आपका जीवन आपस में जोड़ता है| जैसा क़ि मैं अक्सर कहता हूँ " आप सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं और जीवन आपका   आपना चुनाव है |"
तो अपना सबसे अच्छा चुनाव कीजिये |
                                                                          - गप्पू चतुर्वेदी 

Wednesday 5 February 2014

जीवन चलने का नाम

                  जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबहो शाम | पर कहाँ जा रहा है तू ऎ जाने वाले | कहाँ जा रहा है ?
थोड़े समय पहले लग रहा था कि अचानक कुछ बदलने वाला है | पर ये भी वैसे ही निकले|
फिर चाहे मोदी हो या केजरीवाल |

                                क्या जरुरत है गरीबों का बार बार मजाक उड़ने की| दूसरों पर जिन गलतियों का आरोप लगाते हैं वही गलतियां खुद भी करते नजर आते हैं |

                                क्या जरुरत थी दिल्ली में धरने की | वोह भी 26  जनवरी (गणतंत्र दिवस ) के ठीक पहले जब जापान के प्रधानमंत्री भारत के विशिष्ट मेहमान बन के आ रहे हैं | ठीक मुद्दा था पर क्या थोडा सही समय नहीं चुन सकते थे ? और अब वोह क्यों चुप हो गए ?

                               मुझे लगता है की भारत एक प्रयोग भूमि बनता जा रहा है और आन वाले दिनों में नए किस्म के लोग राजनीती में आएंगे जो डरते नहीं | जो वादा करते हैं पूरा करने के लिए |
मैं देख रहा हूँ सुरंग के उस पार से कहीं कोई रोशनी की किरण आ रही है| मुझे दुःख है की पिछला प्रयोग विफल रहा पर मैं निराश नहीं | मैं उदास नहीं | जीवन चलने का नाम...चलते रहो सुबहोशाम ...

                                                                                                                                  - गप्पू चतुर्वेदी