Wednesday, 5 February 2014

जीवन चलने का नाम

                  जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबहो शाम | पर कहाँ जा रहा है तू ऎ जाने वाले | कहाँ जा रहा है ?
थोड़े समय पहले लग रहा था कि अचानक कुछ बदलने वाला है | पर ये भी वैसे ही निकले|
फिर चाहे मोदी हो या केजरीवाल |

                                क्या जरुरत है गरीबों का बार बार मजाक उड़ने की| दूसरों पर जिन गलतियों का आरोप लगाते हैं वही गलतियां खुद भी करते नजर आते हैं |

                                क्या जरुरत थी दिल्ली में धरने की | वोह भी 26  जनवरी (गणतंत्र दिवस ) के ठीक पहले जब जापान के प्रधानमंत्री भारत के विशिष्ट मेहमान बन के आ रहे हैं | ठीक मुद्दा था पर क्या थोडा सही समय नहीं चुन सकते थे ? और अब वोह क्यों चुप हो गए ?

                               मुझे लगता है की भारत एक प्रयोग भूमि बनता जा रहा है और आन वाले दिनों में नए किस्म के लोग राजनीती में आएंगे जो डरते नहीं | जो वादा करते हैं पूरा करने के लिए |
मैं देख रहा हूँ सुरंग के उस पार से कहीं कोई रोशनी की किरण आ रही है| मुझे दुःख है की पिछला प्रयोग विफल रहा पर मैं निराश नहीं | मैं उदास नहीं | जीवन चलने का नाम...चलते रहो सुबहोशाम ...

                                                                                                                                  - गप्पू चतुर्वेदी    

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