Sunday, 18 May 2014

भव्य, दिव्य भारत

भव्य, दिव्य भारत

मोदी जी का सपना भव्य ,दिव्य भारत |
मुझे ख़ुशी है की भारत के लोकतंत्र का महाकुम्भ , भारत को अमृत कुण्ड दिल गया |
अब इस अमृत कुण्ड से निकलने वाला अमृत किस-किस को मिलेगा, यह देखना बाकी है;
मेरी तरफ से मोदी जी को बधाई और शुभकामनाए |
भोपाल ने मुझे भी अपना प्यार और आशीर्वाद दिया | लहरों के बीच साहिल पर पहुचना आसान नहीं होता पर हमे कोशिश करते रहना चाहिए |
मैं भोपाल को धन्यवाद देना चाहता हूँ |
आपके आशीर्वाद और वोट के लिए शुक्रिया | मैं यहीं हूँ, जीवन बहुत मौके देगा |
अभी तो बस वन्दे- मातरम  |

भारत माता की जय |

                                                                                                         
गप्पू चतुर्वेदी 

Saturday, 1 March 2014

सोच..चिंता...चिंतन और मनन

                                      " सोच " एक ऐसा शब्द जो सच में सोचने पर मजबूर करता है | हम सभी सोचते हैं, अक्सर सोच में रहते हैं, "ख्यालों में खोए रहना" ये जुमला भी इसी काम को करने वालो के लिए इस्तेमाल होता है |
पर क्या कभी सोचा है ? हम क्यों सोचते हैं ? क्या सोचते हैं ? क्या इस सोच का कोई फायदा भी है ?

                           जब तक आप इन सवालों के जवाब खुद को नहीं दे पाते, आप की सोच व्यर्थ की सोच है |
                  सोच का सीधा सम्बन्ध दो अन्य शब्दों से हैं है..वोह हैं 'चिंतन' और 'मनन' |

चिंतन अर्थात किसी विषय में सोचना, किसी समस्या के विषय में बात करना, और उसका हल पाने कि और बढ़ना |

जबकि मनन का अर्थ है, बिना किसी समस्या के किसी बारे में खुद से बात करना, उसके विस्तार की और बढ़ना |

ये तीन शब्द 'सोच', 'चिंतन', और 'मनन' किसी भी मनुष्य 
की सफलता तय करने और उसके व्यक्तित्व के विकास हेतु परम आवश्यक हैं , पर अफ़सोस हम में से ज्यादातर लोग 'चिंतन' छोड़ चिंता करते हैं और चिंता, कभी भी हल नहीं देती , अपितु मस्तिष्क को उलझाने और व्यक्तित्व को गिराने का काम ही करती हैं |

           एक चिंतित व्यक्ति किसी के अच्छे समय का साथी नहीं हो सकता, एक चिंतित मन किसी निर्णय पर नहीं पहुच सकता और एक चिंतापूर्ण मष्तिस्क बुद्धिमत्ता का उपयोग नहीं कर सकता |

                    पर हम चिंता करते ही क्यों हैं ? जब जी हम सब जानते हैं की समय और घटना , देश और काल , जीवन और मृत्यु , होनी और अनहोनी हमारे हाथ में नहीं हैं, मैं यहाँ धार्मिक और आस्तिक होने के बार में 
बात नहीं कर रहा, और सच में दुनिया में बहुत कुछ हमारे हाथ में नहीं हैं |
                    और जो हैं उसके लिए हम चिंतन नहीं करते , उदाहरण के लिए अगर मुझे अपने भविष्य की चिंता हैं तो उसे चिंतन से Replace कर दो, खुद से सवाल पूछो, पूछो की समस्या क्या हैं ? क्या ये समस्या तुम अकेले हल कर सकते हो ? क्या तुम्हे किसी और की मदद चाहिए पड़ेगी ? इस समस्या के समाधान में आप आपने आप को 
किस  Role अर्थात पात्र के रूप में पाते हैं ?
                   और जब इन सवालों के जवाब मिल जाए तो लग जाओ अपने भविष्य को साकार रूप देने में | इसी को कहते हैं Proactive होना, अर्थात आने वाली चिंता का अनुमान लगा के चिंतन करो और उसके लिए तैयार रहो |




मैं नहीं कहता की ऐसा हमेशा ही हो सकता हैं की आप आने वाली समस्या के लिए तैयार हो, पर मैं अपने Plan या भविष्य की योजना के लिए तो चरणबद्ध तरीके से तैयार हो सकता हूँ , वही करना हैं हमे | |

                भविष्य के गर्भ में क्या छुपा हैं, नियति हम से क्या चाहती हैं ?
ये पता लगाने का कोई विज्ञान नहीं हैं...पर हम क्या चाहते हैं ये तो हमे हर पल पता हैं ..तो अपनी इच्छा के लिए चिंतन और मनन करिए और देखिये आपके जीवन की कितनी ही आवांछनीय और अनायास आने वाली समस्याए खुद-ब-खुद हल हो जाएंगी |


                                                                                                                                                                                                - गप्पू चतुर्वेदी 

Monday, 24 February 2014

मौसम, मानव और ईश्वर

                             दोस्तों मौसम कुछ ज्यादा ही बेईमान हो चला है, फाल्गुन के महीने में ये ठंडक और सर्दी का ये रूप जहाँ कुछ लोगो को आनंदित कर रहा है वहीँ कई इसके दुष्परिणाम भी भुगत रहे हैं, हॉस्पिटल मरीजों से भर रहे हैं, सबसे ज्यादा नुक्सान हो रहा है फसलों का, मध्य- प्रदेश में गेंहूं के किसानो की हालत ख़राब है, या तो पूरी फसल खराब हो गयी है या फिर उसकी क्वालिटी पर असर पड़ा है | मैं सोचता हूँ क्या होगा छोटे किसानो और उनके परिवारों का ? बेशक़ सरकार मुआवजा देगी..पर हमारे देश में मुआवजा कितनी ईमानदारी और आसानी से मिलता है इसके बारे में कौन नहीं जानता ?

         " रेमोन मैग्ससे " फिलीपीन्स के वह महान राष्ट्रपति जिनके नाम पर
" मैग्ससे अवार्ड" दिया जाता है, उन्होंने कहा था, "किसी भी सरकार या तंत्र को यदि कानून बनाना है तो आखिरी पंक्ति में खड़े उस अंतिम व्यक्ति के बारे में सोच के, उस के कल्याण हेतु कानून बनाओ, तो उस कानून,उस नियम के दायरे में सारा समाज, सारा देश आ जायेगा|" 
               पर मुझे लगता है ईश्वर मैग्ससे साहब की इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता, तभी तो वह जो तांडव दिखता है उस में सबसे ज्यादा नुक्सान गरीब और बेसहारा आदमी का ही होता है | और श्री जय प्रकाश नारायण की वह बात सत्य हो जाती है " गरीब ही मरता है " |
             क्यों की मैं और आप या कोई भी व्यक्ति जिसके पास थोडा भी सम्बल है, वह झटका तो खाता है पर संभल भी पता है, पर उसका क्या जिसने सरकारी बैंक से ही सही उधार ले के गेंहू बोया था, इस सहारे कि बरसात अच्छी हुई है, ठण्ड भी समय पर है, फसल सारे दुःख दूर कर देगी | पर वही मौसम तो दुखदायी हो गया | गुलमर्ग और देहरादून में पर्यटको को अतुलनीय मौसम देखने को मिला, उन्होंने अपने जीवन का सबसे अच्छा समय प्राप्त किया, और वहीँ दूसरी तरफ एक किसान ने अपनी सारी उम्मीद खो दी |
                सड़क का वह भिखारी जिसने अपनी फटी हुई कथरी को ये समझ के तकिया बना लिया था के अब तो गर्मी आ गयी, एक ठंडी बारिश ने उस कथरी को भी किसी काम का न छोड़ा |


हाँ जनता हूँ की हम में से कई लोग कहेंगे " ईश्वर की लीला है, उसकी वही जाने, वह जो करता है वो ही जानता है, हमारे ही पापो का दण्ड है..वगेरह..वगेरह | पर दुनिया का कोई भी तर्क या Fuzzy Logic की कोई भी थ्योरी , किसी एक के आनंद को किसी दूसरे के दुःख का कारण बन जाने को न्यायसंगत नहीं ठहरा सकती |
हाँ हो सकता है, दुनिया बहुत बड़ी है, ब्रम्हाण्ड और भी असीमित और ईश्वर एकमात्र सत्ता ...शायद वह अकेले यह सत्ता सम्भाल पाने में खुद को थोड़ा 'कम' पा रहा हो ? और ऐसे में उसे भी एक टीम की आवश्यकता महसूस हो रही हो ..एक टिकाऊ, भरोसेमंद और ईमानदार टीम |
                                                                            - 
गप्पू चतुर्वेदी 

Thursday, 6 February 2014

महतवपूर्ण और जरुरी


               फ़ोन लगातार बजता जा रहा था और मैं जल्दी में था | गाड़ी चलाऊं या रूककर फोन रिसीव करू ? क्या महतवपूर्ण है और क्या जरुरी ?
कहीं कोई जरुरी फ़ोन हुआ तो मुसीबत हो जाएगी | मैं गाडी चलते में भी फोन उठा सकता हूँ, परन्तु चलते रास्ते में भीड़ इतनी होती है कि रुकना आसान नहीं होता |
                 क्या मैं कुछ गलत तो नहीं कर रहा? ज़िन्दगी महवपूर्ण है, यदि कोई पीछे से ठोंक गया तो पड़े रहना पड़ेगा हॉस्पिटल में| आज कल वैसे भी मौत बीमारियों और दुर्घटनाओ के भेष में आती है |

                 
                       क्या करू मैं? कहीं महतवपूर्ण के लिए जरुरी न छूट जाए | कहीं गैर जरुरी के चककर में माहतवपूर्ण का नुकसान न हो जाए | सोचना पड़ेगा |

खैर जीवन ने आपको जो दिया और आपको जीवन से जो चाहिए, दोनों ही अलग अलग मसले हैं जिन्हे आपका जीवन आपस में जोड़ता है| जैसा क़ि मैं अक्सर कहता हूँ " आप सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं और जीवन आपका   आपना चुनाव है |"
तो अपना सबसे अच्छा चुनाव कीजिये |
                                                                          - गप्पू चतुर्वेदी 

Wednesday, 5 February 2014

जीवन चलने का नाम

                  जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबहो शाम | पर कहाँ जा रहा है तू ऎ जाने वाले | कहाँ जा रहा है ?
थोड़े समय पहले लग रहा था कि अचानक कुछ बदलने वाला है | पर ये भी वैसे ही निकले|
फिर चाहे मोदी हो या केजरीवाल |

                                क्या जरुरत है गरीबों का बार बार मजाक उड़ने की| दूसरों पर जिन गलतियों का आरोप लगाते हैं वही गलतियां खुद भी करते नजर आते हैं |

                                क्या जरुरत थी दिल्ली में धरने की | वोह भी 26  जनवरी (गणतंत्र दिवस ) के ठीक पहले जब जापान के प्रधानमंत्री भारत के विशिष्ट मेहमान बन के आ रहे हैं | ठीक मुद्दा था पर क्या थोडा सही समय नहीं चुन सकते थे ? और अब वोह क्यों चुप हो गए ?

                               मुझे लगता है की भारत एक प्रयोग भूमि बनता जा रहा है और आन वाले दिनों में नए किस्म के लोग राजनीती में आएंगे जो डरते नहीं | जो वादा करते हैं पूरा करने के लिए |
मैं देख रहा हूँ सुरंग के उस पार से कहीं कोई रोशनी की किरण आ रही है| मुझे दुःख है की पिछला प्रयोग विफल रहा पर मैं निराश नहीं | मैं उदास नहीं | जीवन चलने का नाम...चलते रहो सुबहोशाम ...

                                                                                                                                  - गप्पू चतुर्वेदी    

Wednesday, 15 January 2014

खुल गया सिमसिम


एक तिलिस्म बन रहा था और सबका ध्यान चुम्बक कि तरह खिंच गया था | केजरीवाल उस तिलिस्म के निर्माणकर्ता और रचयिता बन गए थे| एक रहस्य गहरा गया था , कौन है ये व्यक्ति? और क्यों कर रहा है यह सब ?
            एक गहरी साँस भीतर ले जाते हुए विचार कीजिये | क्या इन्ही कपिल सिब्बल से केजरीवाल ऐसे गले मिलते सिर्फ 1  साल पहले ? तिलिस्म धराशायी हो गया |
जो सोचा था ये वोह व्यक्ति नहीं हैं | केजरीवाल बदल गए हैं |
              अन्ना का लोकपाल पास हो गया अब वोह चैन कि नींद सो सकते हैं | उन्हें भारत रत्न के लिए विकल्प माना जा सकता है | पर एक सकारात्मक पहलु उभरा है इस प्रक्रिया में| अब लोग थोड़े जागे हुए लग रहे हैं | अन्ना आंदोलन ने मरती हुई राजनीतिक व्यवस्था को कैमरे के सामने लाकर एक ग्लेमर का विषय बना दिया | अब डॉक्टर, इंजीनियर, व्यापारी, कारोबारी, अभिनेता और खिलाड़ी, राजनीती को कैरियर के रूप में देखने लगे हैं |
           
केजरीवाल भारतीय राजनीती के एक मास्टर स्ट्रोक की तरह की  घटना है | अब कांग्रेस और भाजपा या फिर कोई भी राजनीतिक दल जनता को अनदेखा छोड़ने का जोखिम नहीं ले पायेगा | कैमरा सब देख रहा है | टी.वी. और समाचार पत्र बात का बतंगड़ बना देते हैं अब या तो इन नेताओं को प्रशिक्षण लेना होगा  या फिर मैंदान छोड़ना होगा नए योग्य उम्मीदवारों के लिए|
             भारत के लिए अच्छा समय चल रहा है | इस मंथन से बहुत कुछ बाहर आना है | मुझे भारत की तरक्की, अमन और भाईचारे का इंतजार है |

                                                                                                                             -गप्पू चतुर्वेदी   

Sunday, 24 November 2013

अगला प्रधानमंत्री कौन ?

आंकलन करना होगा | और आंकलन होना भी चाहिए | आखिर यही वोह क्षमता है जिसके दम पर मानव सर्वश्रेठ प्राणी बनकर जीवन के जंगल का राजा बन गया है |
आपके अनुसार कौन बन सकता है ? जैसे ही मैंने पुछा, आप भी आंकलन करने लगे | आखिर जीवन ने हमे जो दिया और जीवन से हमे जो चाहिए इसमें हमारा चुनाव महतवपूर्ण है , और चुनाव से पहले हमे आंकलन की जरुरत होती है |

वर्त्तमान परिस्थितियों में कोई एक पार्टी बहुमत ला सके ऐसा संजोग तो किसी नेता कि कुंडली में नज़र नहीं आता |चाहे वोह 'नमो नमो' हो या 'शहजादे' | फिर क्या पटरी बैठेगी ? आंकड़े निर्धारित करते है  और जीवन औसत का खेल है |फिर या तो NDA सरकार बनाये या UPA .

15 वी लोकसभा में पार्टीवार सीटों का विवरण 

भारतीय राष्ट्रीय  कांग्रेस    206
भारतीय जनता पार्टी        116
समाजवादी पार्टी              22
बहुजन समज पार्टी          21
तृणमूल कांग्रेस                19
जनतादल (यूनाइटेड)       19
रिक्त स्थान                      04
नामित सदस्य                 02

कुल                                540 


अब विकल्पों पर  विचार करें | नरेंद्र मोदी, सुषमा स्वराज , नितीश कुमार, शरद पवार, अडवाणी , शिवराज सिंह चौहान , राहुल गांधी  या ?
या तो कोई भी हो सकता है | और यही भारत के लोकतंत्र कि मासूमियत है | शिवराज सिंह  चौहान तो मध्य प्रदेश में व्यस्त हैं , नितीश कुमार भी कुर्सी छोड़ने का जोखिन नहीं उठा पाएंगे | UPA का बहुमत रहा तो राहुल भैया प्रधानमंत्री बन सकते हैं | कांग्रेस के भ्रष्टाचार  भरे 5 साल कि सरकार के लिए भारत की जनता उन्हें पुरस्कार दे तो शायद ये सम्भव है पर शरद का दांव चल सकता है | अब बचे नरेंद्र मोदी , सुष्मा स्वराज और श्री लालक्रुष्ण आडवाणी |

मोदी का जादू चल रहा  है | लोकसभा में भजपा की सीटे बढ़ सकती हैं | पर अपने दम पर बहुमत ला पाना अभी किसी पार्टी के लिए सम्भव नहीं है | तो NDA  कि सम्भावना थोड़ी ज्यादा है | पर नरेंद्र मोदी के नाम पर लोग आसानी से मान जाएँ, लगता तो  नहीं है | नरेंद्र मोदी कि आक्रामक छवि के कारण कई लोग उन्हें गलत समझ बैठते हैं पर वोह एक वाककुशल , चिरंतन, दार्शनिक शासक बनने की  सारी  योग्यता रखते हैं | पर योग्यता काफी नहीं है | समीकरण फिर बैठना चाहिए |

सुषमा स्वराज के नाम पर शायद थोड़ी चर्चा हो | पर ज्यादा देर उनके बारे में सोचना सही नहीं होगा | अडवाणी जी ने ही अटलजी के साथ NDA चलाया था | वरिष्ठ हैं, छुपे रुस्तम हैं | मेरा आंकलन कहता है  कि आडवाणी जी का प्रधानमंत्री बनना सबसे जयदा सम्भव है आगे राम जाने |

आंकलन जरुरी है | आप भी अपना आंकलन कीजिये और साथ में दुआ भी | हमारा चुनाव महत्वपूर्ण है | हमारे पास विकल्प कम है | हमे इस समस्या पर ध्यान देना होगा | विकल्प बढ़ने होंगे | नहीं तो कोई भी और यदि जनता चाहे और अल्लाह मेहरबान हो तो दिग्विजय सिंह भी भारत के प्रधान मंत्री हो सकते हैं | कौन जाने ?
                                                     भारत माता कि जय !

                                                                                                                   -  गप्पू चतुर्वेदी