" सोच " एक ऐसा शब्द जो सच में सोचने पर मजबूर करता है | हम सभी सोचते हैं, अक्सर सोच में रहते हैं, "ख्यालों में खोए रहना" ये जुमला भी इसी काम को करने वालो के लिए इस्तेमाल होता है |
पर क्या कभी सोचा है ? हम क्यों सोचते हैं ? क्या सोचते हैं ? क्या इस सोच का कोई फायदा भी है ?
जब तक आप इन सवालों के जवाब खुद को नहीं दे पाते, आप की सोच व्यर्थ की सोच है |
सोच का सीधा सम्बन्ध दो अन्य शब्दों से हैं है..वोह हैं 'चिंतन' और 'मनन' |
चिंतन अर्थात किसी विषय में सोचना, किसी समस्या के विषय में बात करना, और उसका हल पाने कि और बढ़ना |
जबकि मनन का अर्थ है, बिना किसी समस्या के किसी बारे में खुद से बात करना, उसके विस्तार की और बढ़ना |
ये तीन शब्द 'सोच', 'चिंतन', और 'मनन' किसी भी मनुष्य की सफलता तय करने और उसके व्यक्तित्व के विकास हेतु परम आवश्यक हैं , पर अफ़सोस हम में से ज्यादातर लोग 'चिंतन' छोड़ चिंता करते हैं और चिंता, कभी भी हल नहीं देती , अपितु मस्तिष्क को उलझाने और व्यक्तित्व को गिराने का काम ही करती हैं |
एक चिंतित व्यक्ति किसी के अच्छे समय का साथी नहीं हो सकता, एक चिंतित मन किसी निर्णय पर नहीं पहुच सकता और एक चिंतापूर्ण मष्तिस्क बुद्धिमत्ता का उपयोग नहीं कर सकता |
पर हम चिंता करते ही क्यों हैं ? जब जी हम सब जानते हैं की समय और घटना , देश और काल , जीवन और मृत्यु , होनी और अनहोनी हमारे हाथ में नहीं हैं, मैं यहाँ धार्मिक और आस्तिक होने के बार में बात नहीं कर रहा, और सच में दुनिया में बहुत कुछ हमारे हाथ में नहीं हैं |
और जो हैं उसके लिए हम चिंतन नहीं करते , उदाहरण के लिए अगर मुझे अपने भविष्य की चिंता हैं तो उसे चिंतन से Replace कर दो, खुद से सवाल पूछो, पूछो की समस्या क्या हैं ? क्या ये समस्या तुम अकेले हल कर सकते हो ? क्या तुम्हे किसी और की मदद चाहिए पड़ेगी ? इस समस्या के समाधान में आप आपने आप को किस Role अर्थात पात्र के रूप में पाते हैं ?
और जब इन सवालों के जवाब मिल जाए तो लग जाओ अपने भविष्य को साकार रूप देने में | इसी को कहते हैं Proactive होना, अर्थात आने वाली चिंता का अनुमान लगा के चिंतन करो और उसके लिए तैयार रहो |
मैं नहीं कहता की ऐसा हमेशा ही हो सकता हैं की आप आने वाली समस्या के लिए तैयार हो, पर मैं अपने Plan या भविष्य की योजना के लिए तो चरणबद्ध तरीके से तैयार हो सकता हूँ , वही करना हैं हमे | |
भविष्य के गर्भ में क्या छुपा हैं, नियति हम से क्या चाहती हैं ?
ये पता लगाने का कोई विज्ञान नहीं हैं...पर हम क्या चाहते हैं ये तो हमे हर पल पता हैं ..तो अपनी इच्छा के लिए चिंतन और मनन करिए और देखिये आपके जीवन की कितनी ही आवांछनीय और अनायास आने वाली समस्याए खुद-ब-खुद हल हो जाएंगी |
- गप्पू चतुर्वेदी
जब तक आप इन सवालों के जवाब खुद को नहीं दे पाते, आप की सोच व्यर्थ की सोच है |
सोच का सीधा सम्बन्ध दो अन्य शब्दों से हैं है..वोह हैं 'चिंतन' और 'मनन' |
चिंतन अर्थात किसी विषय में सोचना, किसी समस्या के विषय में बात करना, और उसका हल पाने कि और बढ़ना |
जबकि मनन का अर्थ है, बिना किसी समस्या के किसी बारे में खुद से बात करना, उसके विस्तार की और बढ़ना |
ये तीन शब्द 'सोच', 'चिंतन', और 'मनन' किसी भी मनुष्य की सफलता तय करने और उसके व्यक्तित्व के विकास हेतु परम आवश्यक हैं , पर अफ़सोस हम में से ज्यादातर लोग 'चिंतन' छोड़ चिंता करते हैं और चिंता, कभी भी हल नहीं देती , अपितु मस्तिष्क को उलझाने और व्यक्तित्व को गिराने का काम ही करती हैं |
एक चिंतित व्यक्ति किसी के अच्छे समय का साथी नहीं हो सकता, एक चिंतित मन किसी निर्णय पर नहीं पहुच सकता और एक चिंतापूर्ण मष्तिस्क बुद्धिमत्ता का उपयोग नहीं कर सकता |
पर हम चिंता करते ही क्यों हैं ? जब जी हम सब जानते हैं की समय और घटना , देश और काल , जीवन और मृत्यु , होनी और अनहोनी हमारे हाथ में नहीं हैं, मैं यहाँ धार्मिक और आस्तिक होने के बार में बात नहीं कर रहा, और सच में दुनिया में बहुत कुछ हमारे हाथ में नहीं हैं |
और जो हैं उसके लिए हम चिंतन नहीं करते , उदाहरण के लिए अगर मुझे अपने भविष्य की चिंता हैं तो उसे चिंतन से Replace कर दो, खुद से सवाल पूछो, पूछो की समस्या क्या हैं ? क्या ये समस्या तुम अकेले हल कर सकते हो ? क्या तुम्हे किसी और की मदद चाहिए पड़ेगी ? इस समस्या के समाधान में आप आपने आप को किस Role अर्थात पात्र के रूप में पाते हैं ?
और जब इन सवालों के जवाब मिल जाए तो लग जाओ अपने भविष्य को साकार रूप देने में | इसी को कहते हैं Proactive होना, अर्थात आने वाली चिंता का अनुमान लगा के चिंतन करो और उसके लिए तैयार रहो |
मैं नहीं कहता की ऐसा हमेशा ही हो सकता हैं की आप आने वाली समस्या के लिए तैयार हो, पर मैं अपने Plan या भविष्य की योजना के लिए तो चरणबद्ध तरीके से तैयार हो सकता हूँ , वही करना हैं हमे | |
भविष्य के गर्भ में क्या छुपा हैं, नियति हम से क्या चाहती हैं ?
ये पता लगाने का कोई विज्ञान नहीं हैं...पर हम क्या चाहते हैं ये तो हमे हर पल पता हैं ..तो अपनी इच्छा के लिए चिंतन और मनन करिए और देखिये आपके जीवन की कितनी ही आवांछनीय और अनायास आने वाली समस्याए खुद-ब-खुद हल हो जाएंगी |
- गप्पू चतुर्वेदी